Last modified on 16 जून 2010, at 14:45

पहाड़ जैसे आदमी / विष्णु नागर

Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:45, 16 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु नागर |संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर }} <…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पहाड़ अपने बारे में कुछ नहीं जानते
यह भी नहीं कि वे पहाड़ हैं
इसलिए अपनी उपलब्धियों की
प्रशंसा करना-करवाना भी नहीं जानते

कुछ आदमी भी ऐसे होते हैं
लोग उन्‍हें खोदते रहते हैं
उन पर चढ़ते-उतरते रहते हैं
मकान और मंदिर बनवाते रहते हैं
उनसे नीचे देखते हुए डरते रहते हैं
ऊपर खुला नीला आसमान देख खुश होते रहते हैं

हो सकता है ऐसे आदमी
पहाड़ों के वंशज हों.