Last modified on 17 जून 2010, at 11:54

ए वूमन्स प्राईड / परवीन शाकिर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:54, 17 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=रहमतों की बारिश / परवीन शाकि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उसकी हथेली पर मेरे आँसू
कितने अच्छे लगते हैं
जैसे सुब्‍ह-सवेरे
कँवल की पंखुड़ियाँ
शबनम से जगमग करती हों
मोती जैसी शबनम
फूल की आँखों में जाकर हीरे की कनी बन जाती है
क़तरा-क़तरा दिल करता है
ख़ुशबू धीरे-धीरे तन में फैलाती है
शबनम फूल के रंग में आख़िर रंग जाती है
नन्हे-नन्हे चिराग़ों की लौ बढ़ती है तो
उसका चेहरा पहले से बढ़कर रोशन लगने लगता है
उसकी आँखों में मेरे आँसू
कितने अच्छे लगते हैं !