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सपने जैसा लगता है / विजय वाते
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:37, 19 जून 2010 का अवतरण
वो तो सुबह से सपने जैसा लगता है|
पहला प्यार हमेशा सच्चा लगता है|
जैसे पीले पत्ते झरते आँगन में,
वैसे वो भी उखड़ा-उखड़ा लगता है|
नाच दिखाने तौल रहा जो पर अपने,
मोर कहीं वो रोया-रोया लगता है|
उसकी बातें और करो कुछ और कहो,
उसके किस्से सुनना अछ्छा लगता है|
इश्क, अदावत, खुशबू, पीड़ा,हँसी, छुअन,
बे चहरों के चहरे जैसा लगता है|
दिल वाले महसूस करेंगे इसे "विजय",
शेर ग़ज़ल का दिल का हिस्सा लगता है|