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ज़मीं पर तो आइए / विजय वाते

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छत से आप ज़मीं पर तो आइए|
फिर ज़िंदगी की धर ज़रा आज़माइए|

घर के बडो की सीख पर चढ़ती है त्योरियाँ,
बाहर निकल के और को तेवर दिखाइए|

एस दौर में भी घर बसने की ख्वाहिशें,
साहील पे जाके रेत के कुछ घर बनाइये|

रंगीं है शाम, रात है, निकलेगा चांद भी,
बस मुस्कुराके आप ग़ज़ल गुनगुनाइए|

जो बात उसके बस की हो, करता है वो ज़रूर,
मजबूर है "विजय", तो उसे मत सताइए|