भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूखी रेत में वर्षा जैसे / सरदार सोभा सिंह

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:51, 22 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरदार सोभा सिंह }} {{KKCatKavita}} <poem> सूखी रेत में वर्षा जै…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
सूखी रेत में वर्षा जैसे
इस जग में
भूखों को मिलते हैं भूखे
या फिर कोई अधूरे

ऐसे भी तो हैं कुछ भूखे
चले आएँ जो
दाता-मन लोगों के द्वार

जब-जब भूखे चल कर आएँ
सखी-हृदय वे देते जाएँ
ललचहे लेते ही जाएँ
बढ़ती जाए उनकी भूख

फिर भी पेट भरे न उनका
क्षुधा मिटे न, बिलकुल ऐसे
सूखी रेत में वर्षा जैसे.
पर ऐसे भी हैं कुछ दाता
मिलते हैं जो
दूजे देने वालों से भी
अपने दान के आलोक में
और हो जाते हैं
उनसे एकाकार
बन जाते हैं पार ब्रह्म
तब नहीं रहता
शरीर का होना
और न होना
कोई शर्त.