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सूखी रेत में वर्षा जैसे / सरदार सोभा सिंह
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सूखी रेत में वर्षा जैसे
इस जग में
भूखों को मिलते हैं भूखे
या फिर कोई अधूरे
ऐसे भी तो हैं कुछ भूखे
चले आएँ जो
दाता-मन लोगों के द्वार
जब-जब भूखे चल कर आएँ
सखी-हृदय वे देते जाएँ
ललचहे लेते ही जाएँ
बढ़ती जाए उनकी भूख
फिर भी पेट भरे न उनका
क्षुधा मिटे न, बिलकुल ऐसे
सूखी रेत में वर्षा जैसे.
पर ऐसे भी हैं कुछ दाता
मिलते हैं जो
दूजे देने वालों से भी
अपने दान के आलोक में
और हो जाते हैं
उनसे एकाकार
बन जाते हैं पार ब्रह्म
तब नहीं रहता
शरीर का होना
और न होना
कोई शर्त.