भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काम नहीं चल सकता / रमेश कौशिक
Kavita Kosh से
Kaushik mukesh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:10, 25 जून 2010 का अवतरण
जो तुमको अच्छा लगता है
तुमने वही समझना चाहा
चाहे वह अस्तित्वविहीन हो
लेकिन उसको कब समझोगे
जो यथार्थ है
लेकिन रुचिकर तुम्हे न लगता.
यह दुनिया है
यहाँ तुम्हारे अच्छा लगने से तो
काम नहीं चल सकता.