भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुलिस / रमेश कौशिक
Kavita Kosh से
Kaushik mukesh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:50, 25 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह=हास्य नहीं, व्यंग्य / रमेश कौ…)
जब बच्चा था
अगर कभी मैं रो देता था
दादी अम्मा कहती मुझसे
पुलिस पकड़ कर ले जाएगी
वरना जल्दी से चुप हो जा .
अब जब बड़ा हुआ तो
मैं यह सोच रहा हूँ
दादी अम्मा तुम झूठी थीं
रोता देख पुलिस खुश होती
हँसता देख पकड़ ले जाती.