भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संयुक्त राष्ट्र संघ / रमेश कौशिक

Kavita Kosh से
Kaushik mukesh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:39, 27 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक }} <poem> जब …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब पूरे के पूरे
भूगोल के कानों में कोई
संगीत की जगह
गर्म सीसा उड़ेलता है
और इतिहास
अपने उत्तरदायित्व से
मुँह मोड़कर
बच्चों की तरह असहाय
       बनने का अभिनय करता है
तब संयुक्त राष्ट्र संघ
      एक काठ के कबूतर से ज्यादा
                कुछ नहीं लगता