कबीरदास
उठे और घूम आए
चमरौटी तक ।
जहाँ पीट रहा था आदमी
अपनी 'कुलच्छनी' पत्नी को ।
कबीरदास ने
आदमी को दी
पत्थर की नाव और
कहा : 'नदी पार कर लौटना
तब तक कुलटा या कुलच्छनी
आँगन बुहार लेगी
कपड़े फीच लेगी
रोटी पो लेगी
और तुम्हारा इंतज़ार करती रहेगी... ।
आदमी ने
पत्थर की नाव पानी में उतारी
पर नाव जलसमाधि लेने लगी
उसके साथ...
कबीरदास को
मैंने देखा
मुख्य चौराहे पर चौपड़ बिछा रहे थे।
हँसा मैं :
'यह अरघ-उरघ बाज़ार है कबीर ।'
कबीर ख़ूब हँसे
चौपड़ पर गोटी नहीं
एक आदमी था, दूसरी थी औरत ।
दोनों का खेला
बाज़ार में देख रहे थे बेज़ुबान लोग !
कबीरदास ने कहा :
'खेलो तुम भी, हाँ विचार कर खेलना ।'
देखते-देखते सब,
कबीर बाज़ार से चले गए दूर...।
रचनाकाल : 2004