भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रॉकलैण्ड डायरी–2 / वीरेन डंगवाल
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:36, 29 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल }} …)
कुछ बुद्धिमान
देशप्रेमी प्रवासी भारतीयों के
अथक उद्यम दूरदृष्टि करूणा और कानूनी सिद्धहस्तता
का
साकार रूप है
रॉकलैण्ड
वसन्त के इन आशंकाग्रस्त
छटपटाते दिनों में
हमारा अस्थाई मुकाम
अस्पताल फिर यह याद दिलाता है
कि भाषा कहां-कहां तक जाती है आदमी के भीतर
'कैंसर' एक डरावना शब्द है
'ठीक हो जाएगा' एक तसल्लीबख्श वाक्य
डॉक्टर कभी कसाई नजर आता है
कभी फरिश्ता और कभी विज्ञापन सिनेमा में टूथपेस्ट बेचने
वाला
दंदान साज
खुद की बदहाली
कभी रोमांचक लगती है कभी डरावनी
एक खटका गड़ता है कांख में कांटे की तरह
तुम एक बच्चे की तरह साथ में आये मित्र की बांह पकड़ना
चाहते हो