Last modified on 29 जून 2010, at 13:53

तुम्‍हारी प्रतीक्षा रहेगी-1 / प्रदीप जिलवाने

Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:53, 29 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप जिलवाने |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> तुम आना कि हम…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


तुम आना
कि हम बची हुई रोशनी के
शोकगीत गायेंगे मिलजुल
कि घटते हुए अँधेरे का
उत्सव मनायेंगे

तुम आना
कि हम भले दिनों की स्मृतियों की
उड़ायेंगे पतंगें
कि हम उम्मीद की दरिया में
तिरायेंगे कागज की नौकाएँ

तुम आना
कि हम कोशिश करेंगे लिखने की
कविता में समय का सच
कि हम बाचेंगे साथ-साथ
इतिहास में/इतिहास से छूटे हुए हिज़्ज़े

तुम आना
कि हम तरतीब से जमाकर देखेंगे
फिर अपने घर को एक बार
तुम आना
कि हम इत्मीनान से बैठकर सुनेंगे
एक-दूसरे का हाल

तुम आना
कि तुम्हारी प्रतीक्षा रहेगी।
00