भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर आना / प्रदीप जिलवाने
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:56, 29 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप जिलवाने |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> विदा होते दु…)
विदा होते दुःख तुम फिर आना
कि तुम्हारे आने से
घर में एका रहा चार दिन
कि तुम्हारे आने से
बनी रही चहल-पहल थोड़ी
कि तुम्हारे आने से
अपनत्व का अहसास हुआ
कि तुम्हारे आने से
अंततः तो मिला सुख ही
विदा होते दुःख तुम फिर आना
कि बाकी है अभी यहाँ
दुःख बाँटने की परम्परा।
00