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कितने विचित्र / कर्णसिंह चौहान

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कितने विचित्र हैं हम
नहीं है हमारे धर्म में मूर्ति
फिर भी मूर्त के पार
कहां जा पाते है।

कितने विचित्र हो तुम
आत्मा को भी मूर्ति का
आकार पहनाते हो
फिर इसे मंदिर में बिठाते हो
बताओ यह गोचर शरीर
मंदिर है या मूर्ति ?

जो भी सही
व्यक्त में अव्यक्त को पा जाते हो ।