भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समरस काया / कर्णसिंह चौहान

Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:49, 29 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कर्णसिंह चौहान |संग्रह=हिमालय नहीं है वितोशा / क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


झक्क सफेद है
यहां की समरस काया
पावनता का बोध कराती हुई
यूरोप बर्फ का देश है ।

गदराये उरोजों से
उभरे हैं यहां के
नयनाभिराम पर्वत
यूरोप पहाड़ों का देश है ।

रंग बिरंगे ट्यूलिप
खुलती हैं गुलाब की पंखुड़ी
तराशी हुई रक्तवर्ण
यूरोप फूलों का देश है ।

स्वच्छ नीलिमा से भरी
ये परदर्शी आंखें
यूरोप सागरों का देश है ।

पहाड़ों को तराशकर
बहती नदियां
और दमकते स्वर्णिम
सागर तट
निर्वसन जंघाएं
यूरोप मुक्त वर्जनाओं का देश है ।