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मेरा गाँव / विजय कुमार पंत

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तितलियों के
लाखों रंग
बूढे बरगद की
ठंडी छांव ,
लहलहाते खेत
जिंदा है..
मेरा गाँव ,

गुनगुनाते भँवरे
खिलखिलाती किरण
मन्त्र-मुग्ध बयार
कर जाती तन -मन

चिलचिलाती धूप
जलते पांव
घने बरगद के नीचे
आराम करता गाँव .

सुरमई शाम ,
बजती घंटियाँ गायों की ,
उड़ती पग धूल
छिपती राहों की

जलते चूल्हे
ऊंघते बच्चे
तनी चद्दरों मैं
सिमटे पाँव
कितने चैन से सोता..
कितने प्रेम से जीता है
आज भी मेरा
सुंदर गाँव .....