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समय के समक्ष ढलान पर मैं / मनोज श्रीवास्तव

समय के समक्ष ढलान पर मैं

भीमकाय समय के कदमों पर
मैं खडा हूं
हां, खडा ही हूं
जमीन कोडता हुआ
और वह बरसों से वहीं खडा है
अपनी हथेलियों पर
भूत, भविष्य और वर्तमान
की तीनों गेंदें
बारी-बारी उछालते हुए
टप- टप टपकाते हुए

और मैं हूं कि--
ढलता ही जा रहा हूं
बुरी तरह ढलता जा रहा हूं