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उल्टे हुए पड़े को देख कर / सांवर दइया

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मेरी जड़ें
जमीन में कितनी गहरी हैं
यह सोचने वाला पेड़
आंधी के थपेड़ों से
उलट गया जमीन पर
कितने दिन रहेगा
तना हुआ मेरा पेड़-रूपी बदन ?

रोज चलती है
यहां अभावों की आंधी
धीरे-धीरे काटता है
जड़ों को जीवन

अब
यह गर्व फिजूल
मेरी जड़े
जमीन में कितनी गहरी हैं ?

अनुवाद : नीरज दइया