भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर-बेघर / कर्णसिंह चौहान
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:03, 1 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कर्णसिंह चौहान |संग्रह=हिमालय नहीं है वितोशा / क…)
घर में रहते बेघर हैं
सामाजिक रस्मों बंधे
दो शरीर
पकाते हैं
खाते हैं
आते हैं
जाते हैं
खर्च के हिसाब पर
कभी कभी बतियाते हैं