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कहां है वह धरा / कर्णसिंह चौहान

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कहाँ है वह धारा
जिस पर छोड़े थे गहरे निशान

कहां है वह सरोवर
जिस पर उठाई थी उत्ताल तरंग

कहाँ है वह हवा
जिसमें भर गई थी सुगंध

कहाँ हैं वे ओठ
चिन्हित स्पंदित

स्वपन सा छलमय
कुछ नहीं सत्य
बस कुछ यादें हैं
अकेलेपन को भरमाती हुई
प्रकृति की माया है
पुरुष को हटाती हुई।