भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम कविता में दरवाजा / हेमन्त कुकरेती
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:31, 1 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त कुकरेती |संग्रह= कभी जल कभी जाल / हेमन्त क…)
उसने तय किया भूख मिट जाए
वह प्रेम की कविता लिखेगा
जिसमें प्रेम नामक शब्द कहीं नहीं होगा
अद्भुत प्रेम कविता होगी वह
इसके लिए नफ़रत और युद्ध
युद्ध और विनाश जैसे शब्द ज़रूरी थे
उसे बसों में भूल गए
रूमालों की बात नहीं करनी थी
उन चिठ्ठियों के बारे में भी
उसने नहीं सोचा
जो पीली पड़ती जा रही थीं
बच्चों को वह भूल गया
मिलने आए लोगों से मिलना
उसने ज़रूरी नहीं समझा
अब तक उसे सूझ नहीं रहा था
कि शुरू कैसे करे?
उसे दरवाज़े का ख़याल आया
यही है मुसीबतों की जड़
इसी रास्ते आते हैं कविता में ख़लल ...
उसकी प्रेम कविता में दरवाज़ा बन्द था
बन्द थे झरोखे
लिख-लिख कर वह शब्दों को
फेंक रहा था बियावान में