भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत तुम्हारा / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:00, 2 जुलाई 2010 का अवतरण
गीत तुम्हारा
यह है झुलसी धरती का
सुनें भद्रजन
कुछ सूरज की तपन
और कुछ आँच हमारी भी सिरजी है
आग कोख में है सागर की
बूँद-बूँद कर हमने पी है
किस्सा
हरबुझी साँसों की परती का
सुनें भद्रजन
कथन किसी का
सुलग रहे सब धीमी-धीमी एक आँच में
हमें दिखीं कल लपटें उठती
जलसाघर के नए नाच में
ज़िक्र गीत में
बुझे दिये की बत्ती का
सुनें भद्रजन
लोग जला कर कल्पवृक्ष को
अंगारे चुन कर लाए हैं
जले-ढहे पूजाघर के ही
अब सबके घर में साये हैं
कहीं नहीं
एहसास किसी को ग़लती का
सुनें भद्रजन