भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मदारी की लड़की / भारतेन्दु मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:52, 2 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= भारतेन्दु मिश्र }} {{KKCatNavgeet}} <poem> मदारी की लड़की सपनो…)
मदारी की लड़की
सपनों की किरचों पर
नाच रही लड़की ।
अपने ही
झोंक रहे चूल्हे की आग में
रोटी-पानी ही तो है इसके
भाग में
संबंधों के अलाव ताप
रही लड़की ।
ड्योढ़ी की
सीमाएँ लाँघ नही पाई है
आज भी मदारी से बहुत मार
खाई है
तने हुए तारों पर काँप
रही लड़की ।
तुलसी के
चौरे पर आरती सजाए है
अपनी उलझी लट को फिर फिर
सुलझाए है
बचपन से रामायन बाँच
रही लड़की ।