इधर-उधर उड़ती
सोनचिड़ी से पूछती है
खेत की बेकळू
कब आएगा गांव से
मरियल सी सांड लिए
हल जोतने जोगलिया ?
कब आएगी
उसकी बीनणी
भाता ले कर
गोटा किनारी वाले
तार-तार
घाघरा कांचळी पहने ?
कब खिंडेगी
इधर-उधर
मेरी तपती देह पर
प्याज के छिलकों संग
छाछ राब की बूंदें ?