भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथ-5 / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:44, 3 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>लोगों ने हाथ से हाथ मिलाए दूर तक चलने की शपथ ली निकल भी पड़े साथ-…)
लोगों ने
हाथ से हाथ मिलाए
दूर तक चलने की
शपथ ली
निकल भी पड़े
साथ-साथ
यात्रा में
किसी
मनचाही मंजिल की ओर
लेकिन
मन दौड़ रहे थे
विपरीत दिशाओं में
यात्रा के अंत में
लोग ढूंढ रहे थे
एक दूसरे का हाथ
खाली हाथ लौटने में ।