भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओस की एक बूँद / मीना चोपड़ा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:59, 4 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीना चोपड़ा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ओस में डूबता अन…)
ओस में डूबता अन्तरिक्ष
विदा ले रहा है
अँधेरों पर गिरती तुषार
और कोहरों की नमी से!
और यह बूँद न जाने
कब तक जिएगी
इस लटकती टहनी से
जुड़े पत्ते के आलिंगन में!
धूल में जा गिरी तो फिर
मिट के जाएगी कहाँ?
ओस की एक बूँद
बस चुकी है कब की
मेरे व्याकुल मन में!