भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता / मीना चोपड़ा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:02, 4 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीना चोपड़ा |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> वक़्त की सियाही …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वक़्त की सियाही में
तुम्हारी रोशनी को भरकर
समय की नोक पर रक्खे
शब्दों का काग़ज़ पर
क़दम-क़दम चलना।

एक नए वज़ूद को
मेरी कोख में रखकर
माहिर है कितना
इस क़लम का
मेरी उँगलियों से मिलकर
तुम्हारे साथ-साथ
यूँ सुलग सुलग चलना