Last modified on 4 जुलाई 2010, at 15:17

भीड़ के समुन्दर में / हरीश भादानी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:17, 4 जुलाई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भीड़ के समुन्दर में
बचाव के उपकरण पहने
न रहूं
गोताखोर सी एकल इकाई
उतरता चला जाऊं
अत्लान्त में समाने
टकरा जाऊं तो लगे
भीतर दर्प की चट्टान दरकी है
इतेने बड़े आकार में
इतनी ही हो पहचान मेरी।