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छड़ी / नवनीत पाण्डे
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उसके हाथ-पैर दुरस्त है
वह बिना किसी सहारे आराम से चल फिर सकता है
फिर भी छड़ी लिए चलता है
उसका मानना है
छड़ी जरूरी है, मजवूरी है
सफलता की धूरी है
उसे छड़ी अच्छी लगती है
छड़ीवालों से ही उसकी अच्छी पटती है
कहता है-
छड़ी जीवन में सुरक्षा और संतुलन का आधार है
चारों ओर छड़ी की ही जयकार हैं
छड़ी रखिए,काम पर चलिए
जिसके पास नहीं है छड़ी
उसकी गाड़ी
जहां से चलनी थी
कुछ ही दूर चली
ज्यादा आगे नहीं बढ़ी है
वहीं है खड़ी।