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आदतों के बारे में / गोबिन्द प्रसाद

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आदतें हमसे अपनी ग़ुलामगीरी करवाती हैं
आदतें चाहती हैं कि हम उनका कहा मानते रहें चुपचाप
आदतें हैं जिनके सामने हम सर तो उठाते हैं
लेकिन अक्सर आदतें हमें उस दरिया की ओर ले ही जाती हैं
जहाँ हम बहने लगते हैं
बहने और तैरने में अन्तर होता है
आदतें इस अन्तर को सबसे पहले मिटाती हैं
आदतें हमसे अपनी ग़ुलामगीरी करवाती हैं

आदतें ही हैं जिनके तर्क से जीता नहीं जा सकता
मसल सुनी है कि लोहे को जैसे लोहा काटता है
आदतों को भी आदतों से ही जीता जा सकता है
आदतें बहुत कमज़ोर घड़ी में
हमें अपना ग़ुलाम बनाती नहीं चुन लेती हैं

आदतें हमारी अक़्ल पर भारी
न खुलने वाले ताले की तरह पड़ी रहती हैं
जिसमें सोच और तर्क की ताली
लगते-लगते अक्सर रह जाती है
आदतें हमसे अपनी ग़ुलामगीरी करवाती हैं

आदतें न हमें कमज़ोर करती हैं न बलवान
वे हमें अपने लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ मजबूर करती हैं