भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आंख के तिल में / सांवर दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:52, 4 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>दुनिया कितनी बड़ी है ! पर बहुत बड़ी दुनिया है नहीं मेरी धरती-गगन…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनिया कितनी बड़ी है !
पर बहुत बड़ी दुनिया
है नहीं मेरी

धरती-गगन
हवा-पानी-अगन
के संग-संग पसरकर भी
कण ही हूं
उड़ता-फिरता
आ गिरता हूं तुम्हारी आंख में
जहां है तिल

तुम्हारी आंख के तिल में
समाकर जाना मैंने
यही है सारी दुनिया मेरी !