Last modified on 5 जुलाई 2010, at 12:10

भोंदू जी की सर्दियाँ / वीरेन डंगवाल

Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:10, 5 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल }} …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


आ गई हरी सब्जियों की बहार
पराठे मूली के, मिर्च, नीबू का अचार

मुलायम आवाज में गाने लगे मुंह-अंधेरे
कउए सुबह का राग शीतल कठोर
धूल और ओस से लथपथ बेर के बूढ़े पेड़ में
पक रहे चुपके से विचित्र सुगन्‍धवाले फल
फेरे लगाने लगी गिलहरी चोर

बहुत दिनों बाद कटा कोहरा खिला घाम
कलियुग में ऐसे ही आते हैं सियाराम

नया सूट पहन बाबू साहब ने
नई घरवाली को दिखलाया बांका ठाठ
अचार से परांठे खाये सर पर हेल्‍मेट पहना
फिर दहेज की मोटर साइकिल पर इतराते
ठिठुरते हुए दफ्तर को चले

भोंदू की तरह
00