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वह फिर आ रहा है / गोबिन्द प्रसाद

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किरनों के
अदृश्य हाथ
उसे छूते हैं
धीरे-धीरे
एक रूप फिर कसमसाता है
उजास की आभा लिए
वह फिर आ रहा है
उदित भाल