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मौसम की पेशगी / मनोज श्रीवास्तव
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मौसम की पेशगी
दरवाज़े पर
दस्तक देकर
भिनसारे
आ-टपका मौसम
पेशगियों की भेंट लेकर
आसमान की छत पर
घटाओं की खिड़की से
झांक रही धूप-रमणी
लहराती चंदहली चुनरी ओढ़े
बात जोहती रही--
नाचती-इतराती
मृदंग बजाती
बूँद-छैलियों की.