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रचते रहने की / हरीश भादानी

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मौसम ने रचते रहने की
                    ऐसी हमें पढ़ाई पाटी

रखी मिली पथरीले आंगन
माटी भरी तगारी,
उजली-उजली धूप रसमसा
आंखें सींच मठारी,
                    एक सिरे से एक छोर तक
पोरंे लीक बनाई घाटी
मौसम ने रचते रहने की
                    ऐसी हमें पढ़ाई पाटी

आसपास के गीले बूझे
बीचोबीच बिछाये,
सूखी हुई अरणियां उपले
जंगल से चुग लाए,
                    सांसों के चकमक रगड़ा कर
खुले अलाव पकाई घाटी
मौसम ने रचते रहने की
                    ऐसी हमें पढ़ाई पाटी

मोड़ ढलानों चौके जाए
आखर मन का चलवा,
अपने हाथों से थकने की
कभी न मांडे पड़वा,
                    कोलाहल में इकतारे पर
एक धुन गुंजवाई घाटी
मौसम ने रचते रहने की
                    ऐसी हमें पढ़ाई पाटी