भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मितवा / हरीश भादानी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:40, 5 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश भादानी |संग्रह=शहरीले जंगल में / हरीश भादान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कल से क्या
आज से गवाही ले मितवा
घाटी में आंगन है
आंगन में बांहें
बांहती दहरिया की
कल से क्या
आज से गवाही ले मितवा
आंखों में झीलें हैं
झीलों में रंग
रंगवती हलचल की
कल से क्या
आज से गवाही ले मितवा
माटी में सांसें हैं
सांसों के होठ
बोलती पखावज की
कल से क्या
आज से गवाही ले मितवा
दूरी पर चौराहे
चौराहे खुभते हैं
चरवाहे पांवों की
कल से क्या
आज से गवाही ले मितवा
रात एक पाटी है
पहर-पहर लिखता है
उजलती हक़ीक़त की
कल से क्या
आज से गवाही ले मितवा
घाटी में आंगन है, आंगन में बाहें