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पपीहा थार में / ओम पुरोहित ‘कागद’
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सूने पड़े आकाश में
दूर-दूर तक
कहीं भी नहीं दिखता
बादल का कोई बीज
बोले भी तो
किस बिना पर
पपीहा थार में !