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क्यों भटकती है / ओम पुरोहित ‘कागद’

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घूम-घाम कर
लौट आते हैं खाली पेट
रोही से डांगर
कहीं भी तो
नहीं दिखते पान-फूल।

पूछ सकते डांगर
तो पूछते सब से पहले;
चारों कूंट
क्यों भटकती है
बिफरती
धधकती धूल ही धूल
क्या है आंट
जो नहीं बरसती
इस धरा पर
पल भर भी छांट!