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जीवेष्णा है यहाँ / ओम पुरोहित ‘कागद’

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ओ अकाल!
तेरे दंभ को
कर देंगे चूर-चूर
न सूखेंगे
हींगवाण
कंकेड़ा
इरणां
भुरट-मुरट
सीवण-धामण बूर।
न सही जल
जीव ह
जीवेष्णा है यहां
जो करेगी
हर हल में
हरियल भरपूर।