भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज / नरेन्द्र जैन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:52, 10 जुलाई 2010 का अवतरण
कल
अन्धेरा आया था
ढेर सारी
रोशनी फेंक कर चला गया चुपचाप
कल
औरत आई थी
एक गोल-मटोल बच्चा देकर
चली गई चुपचाप
कल
बच्चा आया था
बहुत सारे खिलौने फैला कर
चला गया चुपचाप