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रैन में ज्यौहीं लगी झपकी त्रिजटे / भारतेंदु हरिश्चंद्र
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रैन में ज्यौहीं लगी झपकी त्रिजटे
सपने सुख कौतुक-देख्यो ।
लै कपि भालु अनेकन साथ मैं
तोरि गढ़ै चहुँ ओर परेख्यो ।
रावन मारि बुलावन मो कहँ
सानुज मैं अबहीं अवरेख्यो ।
सोक नसावत आवत आजु
असोक की छाँह सखी पिय पेख्यो ।