भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रैन में ज्यौहीं लगी झपकी त्रिजटे / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:09, 10 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} {{KKCatKavita‎}} <poem> रैन में ज्यौही…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रैन में ज्यौहीं लगी झपकी त्रिजटे
सपने सुख कौतुक-देख्यो ।
लै कपि भालु अनेकन साथ मैं
तोरि गढ़ै चहुँ ओर परेख्यो ।
रावन मारि बुलावन मो कहँ
सानुज मैं अबहीं अवरेख्यो ।
सोक नसावत आवत आजु
असोक की छाँह सखी पिय पेख्यो ।