Last modified on 10 जुलाई 2010, at 20:24

नैन भरि देखौ श्री राधा बाल / भारतेंदु हरिश्चंद्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:24, 10 जुलाई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नैन भरि देखौ श्री राधा बाल।
मुख छबि लखी पूरन ससि लाजत, सोभा अतिहि रसाल।
मृग से बैन, कोकिल सी बानी अरु गयंद सी चाल।
नख सिका लौं सब सहजहि सुंदर, मनहुँ रूप की जाल।
बृंदाबन की कुंज गलिन में, संग लीने नंदलाल।
’हरीचंद’ बलि बलि या छबि पर, राधा रसिक गोपाल॥