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एक गरभ मैं सौ सौ पूत / भारतेंदु हरिश्चंद्र
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एक गरभ मैं सौ सौ पूत ।
जनमावै ऐसा मजबूत ।
करै खटाखट काम सयाना ।
सखि सज्जन नहिं छापाखाना ।