भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नीला आकाश कह सकता है / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:47, 12 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=अरघान / त्रिलोचन }} {{KKCatKavita‎}} <poem> प्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम
दबे पाँव चला करता है
जाड़े का सूरज
जैसे कुहरे में छिप कर
आता है

साँसों को साध कर
नयन पथ पर
लाते हैं
आना ही पड़ता है

कुहरे में
उषा कब आई
कब चली गई
नीला आकाश
यदि कहे कह सकता है

राग उस पर
बरसा था