भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे सामर्थ्य को चुनौती मत दो / राजेश चड्ढा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:31, 15 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेश चड्ढा |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> मेरे सामर्थ्य…)
मेरे सामर्थ्य को चुनौती मत दो,
दर्द में बेशक कटौती मत दो ।
बंधक है मेरे पास ख़ुदगर्ज़ी आपकी,
मुझे सहानुभूति की फ़िरौती मत दो ।
रोशनी उधार की घर चाट जाएगी,
अपने नाम की रंगीन ज्योति मत दो ।
छीन कर खाने की तुम्हें आदत है,
मेरे मासूम से बच्चे को रोटी मत दो ।