भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लंबी कविता की पाण्डुलिपि / सुनील गंगोपाध्याय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:53, 16 जुलाई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: सुनील गंगोपाध्याय  » लंबी कविता की पाण्डुलिपि

इस पृथ्वी के साथ मिली हुई है एक दूसरी पृथ्वी
अरण्य के साथ एक समान्तराल अरण्य
दोपहर की निर्जनता में दूसरी एक निर्जनता
मुझे विस्मित कर देता है
कभी-कभी बहुत विस्मित कर देता है,
प्यार के मुखमण्डल को घेरे हुए है एक दूसरा प्यार
गहरी सांस के पड़ोस में एक और गहरी सांस
किसी शाम नदी किनारे अकेला बैठता हूं
लहर-लहर टुकड़े-टुकड़े हो जाता है रक्तवर्ण-आकाश
तब एक और नदी के पड़ोस में
असंख्य लहरों का सम्राट बनकर
अकेले एक इन्सान का बैठे रहना --
एक अकेला इन्सान
पानी के इन्द्रजाल में देखता है कि वह अकेला नहीं
समस्त दुखों के हिमशीतल बिस्तर में है
एक और दूसरा दु:ख
सारे चिकने रास्तों के सिरहाने डोलता है
बिसरा दिया गया और एक निरुÌेश्य रास्ता
मुझे वििस्मत कर देता है
कभी-कभी बहुत वििस्मत कर देता है ....

मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी