Last modified on 16 जुलाई 2010, at 21:11

औरतें / चंद्र रेखा ढडवाल

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:11, 16 जुलाई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


बाहर पंच भूतों से बने शरीर को
पाँच तत्वों में विलीन कर देने के
उपक्रम में अति व्यस्त
इस अंतिम घड़ी में
बहुत-बहुत सार्थक करते
दिखते मर्द
भीतर/बीते पल-पल को
सिमरन-माला के
मोतियों-सा घुमातीं
कुछ मन
कुछ लोक निभातीं
दहाड़ें मार-मार कर
रोती औरतें.