मां
मेरे पास बैठी
बीन रही है धनिये के दाने
( तिनके, कंकड़ )
कर रही है भावों-अभावों की गणना
सआत- सआत ।
मां,
हर महीने लाती है
महीने भर का राशन
और हर महीने दोहराती है
यही की यही बात ।
अनुवाद : मोहन आलोक
मां
मेरे पास बैठी
बीन रही है धनिये के दाने
( तिनके, कंकड़ )
कर रही है भावों-अभावों की गणना
सआत- सआत ।
मां,
हर महीने लाती है
महीने भर का राशन
और हर महीने दोहराती है
यही की यही बात ।
अनुवाद : मोहन आलोक