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जब घटा कोई टूट कर बरसे / फ़रहत शहज़ाद

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जब घटा कोई टूटकर बरसे
दिल मेरा तेरे लम्स<ref>स्पर्श
</ref> को तरसे

फिर तेरा नाम शाम तन्हाई
सहमी-सहमी हैं धड़कनें डर से

हाल अन्दर का बस ख़ुदा जाने
कितना रौशन है दीप बाहर से

जाने शहज़ाद बिन तेरे जीना
बूँद जैसे जुदा समन्दर से

शब्दार्थ
<references/>