Last modified on 18 जुलाई 2010, at 03:51

मन करता है / ओम पुरोहित ‘कागद’

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:51, 18 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>मन कुछ न कुछ करता ही रहता है । मन करता है पंखुड़ी बनूं कली बनूंड …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन
कुछ न कुछ
करता ही रहता है ।

मन करता है
पंखुड़ी बनूं
कली बनूंड
फल बनूं
अथवा
वह टहनी बनूं
जिस पर लगते हैं
पंखुड़ी
कली
फ़ल ।
और फ़िर करता है
बनूं भंवरा
सूंघूं फ़ूल
बेअंत
कभी करता है
बनूं रुत
केवल बसंत !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"