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धरती-६ / ओम पुरोहित ‘कागद’
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चाहती है
अकाल से
दूर हो जाए
अदृश्य
अलग
बहुत दूर
परन्तु
कैसे चले
कैसे उडे़
न पंख
न पग !
अकाल जानता है
उसकी यह रग !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"